Friday, November 28, 2014

शादी का अदभुत बाज़ार



बेटे की उम्र 26 और बेटी के उम्र 23 हुई की नहीं ,उनके माँ बाप का कर्तव्य उन्हे चिल्ला चिल्ला के पुकारने लगता हैं की अब जल्दी से लड़की के हाथ पीले और लड़के को घोड़ी पे चढ़ा दिया जाएँ (यहाँ पढे लिखे माँ बाप के बारे मे बात हो रही हैं इसलिए उम्र की सीमा पे कोई मतभेद न रखें एवं बात अजनबियों के बीच शादी की हो रही हैं,जिसे प्रकांड विद्वानो ने अरैंज नाम का मेटाफर दे रखा हैं ) |अब जब कानो ने कर्तव्य की इस तरुण पुकार को सुन ही लिया हैं तो क्या किया जायें ,अब जमाना  मॉडर्न हैं ,रिश्तेदारी मे शादी पुरानी कथा हो चुकी हैं ,लोग भी अब भिन्न भिन्न शहरों की चक्कियों का आटा खाने की लालसा रखते हैं |तो इसी हेतु (हम आपका विवाह कराने का ठेका लेते हैं ) साइट का नया फंडा शुरू हुआ हैं ,इसमे आप को ज्यादा कुछ नहीं बस एक अडोब फोटो शॉप मे एडिट की हुई फोटो अपलोड करनी हैं ,जिसे कोई देखकर कमसे कम इंटरेस्ट तो एक्सप्रेस कर दे |
इन विवाह का ठेका लेने वाली साइट्स की एक अदभुत विशेषता हैं की इसमे लड़का या लड़की कुछ इस तरह चुना जाता हैं जैसे आप मायन्त्रा या ईबे डाट काम पे जूता सेलेक्ट कर रहें हों ,एक उदहारण पेश कर रहां हू तवज्जो दे ,

हाईट- 167 सेमी से 178 सेमी (सामान्यता ज्यादा बताई जाती हैं )
कलर- गोरा (अगर आप इन विज्ञापनों को ध्यान में रखें तो भारत में ९८% लोग इसी रंग के होते हैं ) या गेहुआँ(ये मानव जाती का वो रंग हैं जिस पर वैज्ञानिक शोध कर रहें हैं की इस प्रकार का व्यक्ती दिखता कैसा हैं | अगर गेहूं भुन जाए तो रंग गेहुआँ मे दबा हो जाता हैं |)
सैलरी - 5 लाख से 15 लाख (ये निर्भर करता हैं की लड़की की योग्यता क्या हैं ,मैनेजमेंट या इंजीनियरिंग की डिग्री होने पे ये अमाउंट प्रकाश की गति से बढ़ता हैं |)
शहर - ए क्लास शहरों को वरीयता दी जाएगी बाकी के शहर तब विचारणीय हैं यदि उनमे कम से कम दो माल हो एवं फिल्म रिलीज़ वाले दिन ही सिनेमा हाल मे लग जाती हो |
 नोट: लड़का ड्रिंक ,स्मोक न करता हो हाँ परंतु करने की हसरत रख सकता हैं |
इस उदहारण के बाद मे आपका ध्यान समाज में वुमेन एम्पावरमेंट(पढ़े – हसीबा अमीन) के चलते विवाह गटबंधन मे आये एक क्रांतिकारी परीवर्तन की तरफ आकर्षित करना चाहता हूँ |
 1) आई टी कंपनियों मे काम करने वाले युवक,युवतियों ने एक गुप्त साझा पेक्ट के तहत आपस मे ही विवाह संबंधी गतिविधियां करने का निर्णेय लेते हुए अपने माँ बाप को बिंग सरीखा सर्च इंजिन बनने से बचा लिया हैं|
2)बैंक मे नियुक्त पीओ पीओ आपस मे खेल रहें हैं,उन्होने भी अपना डोमैन सुनिश्चित कर लिया हैं |
3) बीएड किए हुए लड़की के बाप को बीएड लड़का ही चाहिए,सर्वा शिक्षा अभियान देश के बच्चों का तो पता नहीं मगर इस वर्ग के स्त्री और पुरुष का काफी भला कर रहां हैं |
इस तरह की सोच ने फ्रेस "मरीजेस आर मेड इन हैवन" को बदलकर "मरीजेस आर मेड इन आई टी ,बैंक एंड टीचिंग सैक्टर " कर दिया हैं |
समाज मे आये इस तरह के आकस्मिक पारीवर्तन और नई सोच से कोर सैक्टर मे काम कर रहें लोगो मे हड़कंप मच गया हैं ,उनकी माँ बिंग और बाप गूगल बन गए हैं परंतु फिर भी उपयुक्त वर वधू की तलाश नहीं कर पा रहें हैं |

कोर सैक्टर के लोगो ने ये निर्णय लिया हैं की वो सरकार से इंटर कास्ट से ज्यादा इंटर सैक्टर विवाह कराने को प्रोत्साहित करने के लिए अर्ज़ी देंगे और समाज मे फेल रही इस कुरीति को रोकने का प्रयत्न करेंगे |

शहर के स्वाद

आप किसी भी शहर में रहें वहां का खान पान उस शहर का स्मरण आपको निरंतर कराता रहता हैं आप को रह रह के उन दुकानों की याद आती रहती हैं जहाँ पे स्वादिष्ट पकवान आप अपने दोस्तों और परिवार के साथ खाकर आनंदित होते थे और हर शहर में ऐसी कोई न कोई प्रसिद्ध दूकान ज़रूर होती हैं जो उस शहर की पहचान बन जाती हैं|मैं अपने जन्मस्थान हरदोई के अलावा लखनऊ और मेरठ में काफी समय रहा जहाँ की कुछ दुकानों के ख़ास व्यंजनों ने मेरा समय बहुत ही स्वादिष्ट तरह से गुजारा |मैं यह दस्तरखान आपके साथ साझा करना चाहता हूँ ताकि यदि आप इन जगहों पे जायें तो निम्न व्यंजनों का ज़रूर लुत्फ़ उठाएं |
चलिए पहले आपको मेरठ ले चलता हूँ ,स्वत्रंता संग्राम की शुभारम्भ करने वाला यह ऐतिहासिक शहर अपने उत्कृष्ट खान पान के लिए भी काफी चर्चित हैं, मेरा प्रिय हैं
 १) राधे के छोले
२) हरिया की लस्सी
३) अबू लेन का फालूदा और कंचे वाली बोतल
४) राणा के ढाबे का मलाई कोफ्ता
चलिए एक एक कर आपको सबकी विशेषता से अवगत कराता हूँ
सबसे पहले राधे के छोले –अबू लेन की शुरुआत में ही एक पुरानी सी दिखने वाली दूकान ,इस दूकान पे हमेशा आप काफी भीड़ पाएंगे और जब आर्डर करने के बाद आप राधे के छोले से रूबरू होंगे तो आप पायेंगे बात छोलों में नहीं भटूरो में हैं , भटूरे आपको एक अलग दुनिया में ले जाते हैं, इसके साथ परोसने वाला गाजर का आचार आपको भटूरे से बात करते हुए दिखाई देगा इसका खटास लेता हुआ तीखापन आपको आउट ऑफ़ वर्ल्ड फ्रेज का मतलब समझा देगा|
हरिया की लस्सी –आपने कभी किसी को लस्सी में बर्फी फोड़ते हुए देखा हैं नहीं न यही विशेषता हैं हरिया की लस्सी की ,आपने ज्यादातर लस्सी में काजू ,किशमिश या रुआब्जा मिला के ही पिया होगा मगर हरिया अपनी लस्सी में अपनी ही बनाई हुई बर्फी फोड़ता हैं और लस्सी के नये आयामों से आपको परिचित कराता हैं |
अबू लेन को आप लखनऊ का हजरतगंज समझ लीजिये रास्ते के दोनों तरफ ब्रान्डेड कंपनियों के शोरूम के बीच में गाड़ियों की पार्किंग आपको हजरतगंज की याद दिलाती हैं ,सामने बड़ा सा हनुमान मंदिर और बस वही अपना फालूदा वाला |ठेले पे इस उत्कृष्ट तरीके का फालूदा ग्रहण करके आप अपने आपको धन्य घोषित कर देंगे और बनाने वाले का हाथ भी चूम सकते हैं| बस थोड़ी ही दूर चलेंगे तो पोनी टेल में एक भाईसाहब कंचे वाली बोतल में सोडा पिलाते हुए पाएं जायेंगे |अपने दोस्तों के साथ विन्निंग मोमेंट में इसको पीना एक अलग अनुभव से आपको ज्ञात कराएगा|
अगर आप बागपत बाईपास पे किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ते हैं और आपने राणा के ढाबे पे मलाई कोफ्ता नहीं खाया तो आप का चार साल बर्बाद हो गया जब आप इस मलाई कोफ्ते को परोसा हुआ देखेंगे तो इसमें आप एक उद्देश्य पाएंगे और इसका केवल और केवल एक ही उद्देश्य होता हैं आपकी जबान को स्वर्ग की अनुभूति कराना |
आप जब भी मेरठ जायें तो इनसे ज़रूर रूबरू हो यह मेरठ का अभिमान हैं और यह आपको मेरठ भूलने नहीं देंगे |

आइये अब आपको मेरठ से नौचंदी एक्सप्रेस से लखनऊ लिए चलते हैं ,चारबाग से उतरते ही आपको जैन साहब के बहुतेरे होर्डिंग यह बोस्ट करते हुए मिलेंगे की यह मर्दाना इलाज़ बहुत बढ़िया करते हैं अगर आपको वाकई में कोई समस्या हैं तो ध्यान देवे अन्यथा आगे बढें और शहर-ऐ-लखनऊ से वाकिफ हो ,जैसे आप आगे बढ़ेंगे आपको कई ऑटो और बसों के पीछे लिखा हुआ मिलेगा मुस्कराइए आप लखनऊ में हैं मगर फर्जी मुस्कराने की कोई ज़रुरत नहीं हैं वर्ना वहां के लोग आपको नूरमंज़िल में भी डाल सकते हैं यह वहां का पागलखाना हैं |
वैसे यह शहर नॉन वेज खाने वालो के लिए जन्नत हैं और कई ऐसी जगह हैं जहां आप बेपनाह और बेशुमार मोहब्बत से इसका आनंद ले सकते हैं मेरी प्रिय जगह हैं
१)      टुंडे के कवाब (अमीनाबाद वाले)
२)     दस्तरखान की बिरयानी और उन्ही के सामने मौलाना साहब के बोटी कवाब
३)     अवध की बिरयानी
४)    भूतनाथ की पानीपूरी
५)    प्रकाश की कुल्फी

आप लखनऊ गये और आप ने टुंडे के कवाब नहीं खाए तो आपको २ ३ साल की कैद तो बनती हैं यह इतने मुलायम होते हैं की जैसे उन का गोला या सुरेश वाडेकर की आवाज़ मुंह में रखते ही फना ,लगभग हर प्रसिद्ध स्टार के साथ टुंडे की तस्वीर खुद बा खुद ही इसकी जायके की कहानी बया करती हैं |
आपने बिरयानी कई जगह खायी होगी पर जो बात दस्तरखान की बिरयानी और अवध की बिरयानी में हैं वो बेमिसाल हैं इसमें इतिहास छुपा हैं चावल को विशेष तरीके से किस तरह गोश्त के साथ पकाते हैं कोई लखनऊ वालों से सीखे |
गोमती नगर में ही दस्तरखान के सामने एक मौलाना साहब की छोटी सी दूकान हैं जो थोड़ी छुप सी जाती हैं एक मित्र के जरिये हम एक बार इनके यहाँ पहुच गये और उसके बाद जिस जायके से हम रूबरू हुए वो अविस्मर्णीय था ,इनका बोटी कवाब शानदार हैं आप दाँतों तले अंगुलिया दबाने पे मजबूर हो जायेंगे |

अमीनाबाद में प्रकाश की कुल्फी ज़रूर आजमायें ,आपकी जबान को एक अलग सुकून मिलेगा इसका फालूदा भी कुल्फी से गुफतगू करता हुआ आप पायेंगे |
आइये अब आपको महिलाओं के प्रिय स्थान पे ले चलते हैं ,जी हाँ शायद सही पहचाना आपने भूतनाथ की पानीपूरी ,तरह तरह का पानी ,तरह तरह का फुल्का और जब इनका मिलन होता हैं तो स्वाद को अलंकारित करता हुआ आपको सुकून देता हैं ,यहाँ आपको खिलाने वालों की गति स्तब्ध कर देगी ,सारे इतने पारंगत होते हैं की अच्छी खासी भीड़ को झट से निपटा देते हैं खाते हुए महिलाओं की उछल कूद ,चुलबुलाहट भी आपको रोमांचित करेगी|
इन व्यंजनों के ज़रिये ही यह शहर अपने आपको आपके मन में जिंदा रखते हैं और बार बार आपको बुलाते रहते हैं |


लल्लन की बरात


मेरी मित्रता लल्लन से उस समय हुई जब लल्लन हमारी कंपनी में सहायक मेनेजर के तौर पे ज्वाइन कियासामान्य कद,गोरा रंगपटना का रहने वाला लल्लन काफी खुश मिजाज़ और स्टाइलिश था |चलते समय तो वो अपने सर के उपरी हिस्से को दायें तरफ ९ डिग्री झुका लेता था कहता था जबसे अजय देवगन की जिगर देखी हैं ऐसे ही चलता हूँ ,स्वाभाव से काफी मिलनसार और रसिया किस्म के थे लल्लन जी ,हर आती जाती हुईं लड़की को केबिन के सामने से बिना बात किये हुए जाने नहीं देते थें ,कुछ लडकियों ने तो दूसरी साइड से निकलना भी शुरू कर दिया था,
 उम्र का काटा २७ सावन पार कर चूका था,घर वाले भी लड़कियों की फोटो लेके हाथ धो के पीछे पढ़ गये थे,रोजाना कहीं बड़े पापा से तो कहीं मामा से,फूफा से रिश्तें आना शुरू हो गये थे हमारें देश में शादी कराने में इन नातेदारों का काफी रोल रहता हैं,अख़बारों में विज्ञापन भी छपवा दिया गया था ,६ अकों में सैलरी को बोल्ड लेटर्स में अंकित किया गया था,लड़की ग्रेजुएट चाहिए थी ,मेरी लल्लन से  दहेज़ के विषय पे बहस हुआ करती थे लल्लन कहता था मुझे शादी में कम से कम तो चार चक्का,१० लाख नकद और कलेवा में फास्टट्रैक की तीन वाच अवश्य मिलेंगी ,तो में बड़ा आश्चर्य चकित रहता था की कहाँ बोल लग रही हैं में भी सम्मिलित हो जाता हूँ दो लाख शक्ल के कम दे देना “.में तो कहता था की लड़कियों के बाप स्मार्ट हो गये हैं डी.अल.फ. से इंटरेस्ट फ्री लोन लेके दहेज़ दे रहें हैं फिर लड़के को इंटरेस्ट के साथ विवाह के बाद लोन चुकाना पढ़ जाता हैं और शादी में सारा इंटरेस्ट ख़त्म होने लगता हैं ,यह कहकर में भी अलंकारों से खेल लेता था |
 खेर लल्लन ने लडकिया देखनी चालू की,अरेंज विवाह में यह पहला और अति आवश्यक पड़ाव हैं,क्यूंकि फोटो देख के आप भ्रमित हो सकतें हैं ,एडोबी फोटोशोप ने इस फील्ड में धूम मचा रखीं हैं ,सोफें पर बेठते हे लल्लन के बाबु जी यू. पी.अस.सी. के अध्यक्ष बन गयें ,लगे पूछने विस्तार में आपकें शौक क्या हैं,आप पेन्टिंग बना लेती हैं ,नृत्य कर लेती हैं लडकी भी बाज़ार से खरीदी हुई पेन्टिंगहेंडीक्राफ्ट अपने बनाई हुए बतानें लगी|लल्लन के बारें में बता दूं जबसे लडकी ने कमरें में प्रवेश किया था लल्लन खिड़की से बहार झांक रहें थे ,बाप के सामने लल्लन पूरा नहीं देख पा रहें थे |
 लल्लन के पिता जी को लड़की पसंद आ गयी तो उन्होंने अपना राकेट छोड़ा और पूछा आपका संकल्प क्यां हैं “|संकल्प दहेज़ के डिमांड का कोड वर्ड हैं ,बेचारे लल्लन के होने वाले ससुर जी सकुचा  गयें|खेर मामला कितने पे तय हुआ ये तो नहीं पता पर चार चक्का अवश्य मिल गया और शादी की तारीख भी तय हो गयी |
 शादी तय होने के बाद लल्लन ने लता को रिलायंस का मोबाइल दे दिया ,लल्लन मुझसे कहता रहता था के रिलायंस का आशीर्वाद लेना लडकी के मामले में बहुत ज़रूरी हैं बिना रिलायंस के कोई शादी सफल नहीं हुई हैं|अब क्या था लल्लन रात भर चमगादड़ बनें घुमा करती थे लता से रात १२ से ३ उनका फिक्स रहता था |अंगूठी बदलने के बाद दोनों में काफी प्रेम बढ़ गया था|लल्लन खूब बड़े बड़े वादें किया करतें थे,३६ चाँद और ८२ तारें तोड़ चुकें थे हमारे लल्लन जी ,में समझाया करता था जिन चीजों के ठेले मोहल्ले में आतें हो उनकें वादें किया करो वरना बाद में बड़ा तकलीफ होती हैं|
 लल्लन जी को मैंने शादी के लिए कुछ हिदायतें भी दी जैसे
१-  मार्किट रीसर्च कर लो की जूता चुराई क्या रेट चल रहा हैं”|
२-  अपने मामा से सावधान रहना क्यूँकी ,शादी में व्यवधान वही डालता हैं,हर शादी में लडकें के मामा को ही कलेवा के टाइम जलेबी ठंडी मिलती हैं.
३-  गाने सोच समझ के बजवाना क्यूंकि हमारी बुआ के यहाँ विदाई के टाइम मेरी जान चली दुश्मन के घर ,रब खेर करे रब खेर करें बजने से काफी बवाल हो गया था|
४-  बारात के टाइम नागिन वाला गाना तैयार रखना झांसी वाले तुम्ह्रारे मौसा उसी पे  नाचतें हैं|पिछली बार न होने की वजह से काफी नाराज हो गयें थें|
५-  बाकी लता का पूरा ध्यान रखना,डी जें पे उसी के साथ नाचना |
मेरी शादी तो न हुई थी पर कई बारात में नाचने की वजह से अनुभव आ गया था.
खेर कुछ कारणों की वजह से में लल्लन की बारात में तो न जा सका,पर सुना हैं खूब नाच गाना हुआ खेर मैंने अपने मित्र के द्वारा १००० रुपया का व्यव्हार भिजवा दिया.
भगवान् लल्लन और लता को सुखी रखें और जल्द ही दोनों बोहनी करे.
     


क्यों बना अमिताभ बच्चन एक महानायक


अमिताभ बच्चन केवल एक नाम नहीं हैं ,यह एक पर्याय हैं उस युग का जिसे भ्रष्टाचार ,बेरोजगारी के विरुद्ध क्रान्ति का युग भी कहा जा सकता हैं ,उस युग को इस शख्स की आवाज़ ने जो क्रांतिकारी बल प्रदान किया वो अतुलनीय एवं अविस्मर्णीय हैं ,सवाल यह उठता हैं इस आदमी में या इसके काम में ऐसा क्या था जो उस समय के साथ अनुनादित हुआ मैंने काफी विचार किया और कुछ फिल्मों के दृश्यों को चिन्हित किया जो मुझे समझ आते हैं की अमित जी के उस चरित्र को दिखाने में काफी योगदान देते हैं ,उनके कुछ अंश और उनके सिनेमेटिक अनुभवों को आपके सामने प्रस्तुत करने की एक कोशिश कर रहा हूँ ,
मेरा बाप चोर हैं फिल्म दीवार का वो द्रश्य जिसमे कुछ लोग विजय के हाथ में लिख देते हैं की मेरा बाप चोर हैं उस समय की कुप्रस्थितियों को सांकेतिक करता हैं सलीम जावेद साहब के ज़रूर समाज से कुछ न कुछ तो वैचारिक मतभेद होंगे जिसके चलते उन्होंने यह डायलॉग लिखा की एक व्यक्ती जो एक आन्दोलन का लीडर हैं वो कैसे दबाब में आकर प्रबंधन की सारी शर्तों को मानते हुए हर मजदूर को बेच के बाहर निकलता हैं मगर समाज उसे चोर ,रिश्वतखोर समझते हुए उसके लड़के के हाथ में उसकी जात अंकित कर देता हैं ,उस लड़के का अंतर्विरोध ,मानसिकता ऐसे हालात में क्या रहेगी ,उसके विचार कैसे पनपना शुरू होंगे इस सोच को बच्चन साहब ने जिस इंटेंस तरह से परदे पे जिया हैं वो एक सिनेमेटिक अनुभव हैं |
में फैके हुए पैसे आज भी नहीं उठाता खुद्दारी से ओतप्रोत यह शब्द आज भी जनमानस में चेतना भर देते हैं ,यह शब्द समाज में चल रही आर्थिक असमानता को चोट करते हैं ,जब विजय डाबर साहब के ऑफिस की खिड़की से बाहर अपने अतीत में झाकता हैं तो उसे असफलता की ठोकरें ,मजबूरियाँ ,समाज का गरीबो के प्रति अनैतिक आचरण सब दिखाई देता हैं ,वो अपनी पहली सफलता पे गर्व करता हैं चाहें वो कानून के खिलाफ हो और जब डाबर साहब उसे उसका इनाम देते हैं तो जिस खुद्दारी से वो डाबर को अपने इस सफ़र को छोटी से कहानी से बताकर जब यह बोलता हैं की में आज भी फैके हुए पैसे नहीं उठता तो वो विजय समाज के हर उस व्यक्ति का आदर्श बन जाता हैं जो इस मजबूरी में दबा कुचला हैं ,आर्थिक असमानता और सामाजिक अनेतिकता का शिकार हैं |
जब यह बिल्डिंग बन रही थी तो मेरी माँ ने यहाँ इटें उठायी थी सिनेमा समाज का चेहरा होती हैं और फिल्म दीवार ने इस पंक्ति को जिया हैं ,अगरवाल जैसा व्यापारी जब विजय को कहता हैं यह बिल्डिंग तुम महेंगी खरीद गए तुम चाहते तो में इसके २ ३ लाख कम कर देता, विजय का वो जवाब सुनकर हतप्रभ रह जाता हैं जो मानवीय भावनाओ और संवेदनाओं का परिचायक हैं अगरवाल साहब अगर आप इसके ३ ४ लाख और भी मांगते तो में दे देता क्यूंकि जब यह बिल्डिंग बन रही थी तब मेरी माँ ने यहाँ इटें उठायी थी विजय की समाज के प्रति विरोधों को प्रदर्शित करता हैं एवं विजय की उस गर्व की अनुभूति को दिखाता हैं की आज वही बिल्डिंग वो अपनी माँ के चरणों में भेट करने वाला हैं |
मेरे पास माँ हैं विजय का अपने भाई के साथ वाद विवाद का यह द्रश्य वैचारिक दृष्टिकोण के टकराव को अंकित करता हैं |यह द्रश्य एक बात तो सीधे तरह से कह जाता हैं की सामजिक परिवेश और आदमी के अपने अनुभव उसकी सोच और विचारधारा तय करते हैं
मीना का इन्तेजार फिल्म शराबी का वो द्रश्य जिसमे अमिताभ अपनी प्रेमिका मीना का अपने जन्मदिन पे इन्तेजार करते हैं कहना होगा सिनेमाहाल में बैठा हर शख्स उस दिन मीना का इन्तेजार कर रहा होगा और शायद उसके आने की प्रार्थना भी ,लोग तो यहाँ तक कहते हैं की उस दिन अगर मीना नहीं आती तो शायद रामपुर से कभी सांसद न बन पाती ये तो उस दिन मीना के जन्मदिन में आने का ही कर्ज था जो अमिताभ बच्चन के प्रशंसको ने अदा किया और रामपुर से मीना को विजयी बनाया |
तुम्हारा नाम क्या हैं बसंती अमिताभ की कॉमिक टाइमिंग का इससे अच्छा उदहारण कोई और नहीं हो सकता और रेलवे स्टेशन से ठाकुर के घर तक का तांगे का सफ़र कोई अमिताभ का चाहने वाला नहीं भूल सकता जिसमे अमिताभ जी ने अपनी गजब कॉमिक टाइमिंग का प्रयोग करके दर्शको को मनोरंजित किया |
डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हैं डॉन के वर्चस्व को स्थापित करता यह डायलाग आज भी अमिताभ की उस बेहतरीन आवाज़ और इंटेंस आँखों को दिमाग में तरों ताजा कर देता हैं ,अदभुत अभिनय क्षमता का यह बेजोड़ उदहारण हैं |

इसके अलावा अमिताभ बच्चन के डायलाग्स की अनगिनत लिस्ट हैं जिसे उन्होंने उस सोच के साथ परदे पे प्रस्तुत किया हैं जिस सोच के साथ वो लिखे गये लेकिन सलीम जावेद को भी उस समय की सामाजिक विषमताओ और वातावरण का आन्दोलनकारी अध्यन करने के लिए श्रेय देना चाहिए समाज का जो प्रारूप उन्होंने सिनेमा के द्वारा लोगो के सामने रखा और बच्चन साहब ने उनको जिस तरह से परदे पे जिया मुझे उस सदी के लोगो से जलन होती हैं जिन्होंने उस वक़्त के अमिताभ को अभिनय करते देखा क्या सिनेमेटिक अनुभव हैं ,अदभुत |

Wednesday, February 5, 2014

बंद करों वेवकूफ बनाना

कल ही अदालत का निर्णय पढ़ा मालुम चला की विज्ञापनों में यदि अभिनेता ,अभिनेत्री ,मॉडल्स बरगलाने वालें उत्पादों का समर्थन करतें हुए पाए जायेंगे तो कंपनी के साथ उन पर भी इस गेर्जिम्मेदाराना हरकत के लिए कारवाई की जायेगी ,पढ़ के अच्छा लगा सोचा चलो अब तो कोई डीओ से लडकी को आकर्षित करने वाला ,तीन हफ्तों में रंग साफ़ करने वाला ,डॉलर की जांघिया से लडकी को सेक्सुअली उत्तेजित करने वाला जैसे विज्ञापनों से बचेगा ,थोडा खराब भी लगा की यमी गौतम (फेयर एंड लवली वाली ) का करियर भी ख़त्म हो जायेगा और खान साहब को भी फेयर एंड हन्द्सम और नवरत्न तेल की दूकान बंद करनी पड़ेगी |खेर खान साहब फिल्मो से काफी  कम रहें हैं ,यमी के बारे में सोच के बुरा लगता हैं |

अदालत का निर्णय मुझको सही लगा की कही ना कही तो जिम्मेदारी तय करनी ही पड़ेगी क्यूंकि जनता जो इन सेलिब्रिटीज को आंखों में चढ़ाएं रहती हैं आँख मूँद कर इनकी प्रमोट की हुई चीजों को खरीदती हैं ,मेरा एक मित्र हैं राजीव सिंह कुशवाहा , कृष का बहुत बड़ा फेन हैं मुझे आज भी याद हैं जब हृतिक जी ने सिंथोल का विज्ञापन किया था तो भाई जी ने साबुन ,डीओ ,शैम्पू सब सिंथोल का ही लगाया था ,और यहाँ तक की सुना हैं जब से लक्स ने टैग लाइन निकाली हैं की अपना लक पहन के चलो लोग पुखराज और नीलम की जगह लक्स की जांघिया पहनने लगे हैं |चलो व्यंग की लिए किस्सा अच्छा था मगर स्टार्स की उत्पादों को गलत तरह से प्रस्तुत करना रचनात्मकता कम और संवेदनाओं का बाजारूपन ज्यादा लगता हैं |

एक बात और ध्यान देने योग्य हैं की हर विज्ञापन का केंद्र बिंदु लडकी को इम्प्रेस करना ही हैं (जो युवा वर्ग को टारगेट करता हैं) क्या हर युवा केवल इसी उद्देश्य से जी रहां हैं मुझे तो बिलकुल नहीं लगता या भारतीय युवा उपभोक्ताओ को कम से भी कम आँका जा रहां हैं ,विचारणीय हैं ,विज्ञापनों के इस एक ही लेन पे चलने से यह भी निकल के आता हैं की इस इंडस्ट्री में सृजनात्मकता की कमी हैं|

ये मत समझिएगा की में इन सब चीजों का प्रयोग कर चूका हूँ और असफल होने पर भड़ास व्यक्त कर रहां हूँ ,एक विचार रख रहां हूँ जो मुझे लगता हैं उचित हैं |